तन्हाइयों से मिलना आ गया
उनको यूँ रंग बदलना आ गया…
उम्र के उस पड़ाव पर,
जब हुआ तज़ुर्बा…
ज़िंदगी के वास्ते,
हमको फिर संभलना आ गया…
मोहब्बत में ठोकर खा- खाकर,
यहाँ रोती हुई-
ज़िंदगियों को भी ज़ख़्म सिलना आ गया…
हँसते हुए चेहरे की,
उदासी हम तुम्हें क्या बताएँ-
हमें अब तन्हाइयों से मिलना आ गया….!!!!!
-ज्योति खारी