जीना है ख़ुद के लिए
शीर्षक – जीना है ख़ुद के लिए
कुछ ज़ख्म अब
पुराने हो गए
जिनका इलाज़
अब संभव नहीं
जो घाव अपनों से मिले
वो घाव वक्त ने भरे
अब माफ़ करना
संभव नहीं
अब अपनों से
कोई उम्मीद नहीं
अब फ़र्क नहीं पड़ता
कौन अपना है
कौन पराया है
अपना जीवन
जीना है ख़ुद के लिए
अपने भविष्य के लिए
कुछ सपने लिए
सपनों की उड़ान भर
मौन धारण किए
चलते जाना है
मंजिल को पाना है
ख़ुद के लिए
_ सोनम पुनीत दुबे