जीना भी हुआ है मुश्किल।
जीना भी हुआ है मुश्किल और मरना भी हुआ है मुश्किल इश्क में।
अब उसको क्या कहे जो हो गया है मोहब्बत में मेरी संगदिल।।1।।
रिश्तों की दुहाई देकर वह छोड़कर हमे तन्हा जा रहा है।
नज़रें देखती रही सड़क पर जब तक वह हुआ ना ओझिल।।2।।
हम दूर रहते थे इसीलिए ज़िंदगी में बेदर्द हुस्न वालों से सदा।
तेरी बेवफाई से इश्क़ में हम भी खूब बदनाम हो गए बेदिल।।3।।
लगे ना किसी दुश्मन को भी मोहब्बत का रोग इस दुनियाँ में।
दीवानों का तड़पना ही होता है इस इश्क का मुस्तकबिल।।4।।
उनको जब से देखा है गैर की बाहों में बिखर से गए है हम।
क्या शम्मा में जल कर मर जाना ही है परवानों की मंज़िल।।5।।
अब किसी को क्या बताये तेरी बेहयाई का आलम महफ़िल में।
हस लेते है झूठ का वरना ज़िन्दगी लगने लगी है हमको बोझिल।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ