**जीत के लिए —– हल निकाल रहा है!**
जीतने के लिए हर कोई खेल रहा है।
हर खिलाड़ी अपने दांवपेच उड़ेल रहा है ।।
जीत तो किसी एक के नसीब में ही लिखी है।
कोई आगे तो कोई पीछे धकेल रहा है।
सिलसिला ये कैसा चल रहा है।।
न जान न पहचान फिर भी,
शब्द लेखनी से गुणगान करता जा रहा है।
कौन नहीं चाहता कि जीत उसे ही मिले।
सिफर पर बैठा राहगीर भी, ख्वाब अपने पाल रहा है।।
जरूरी भी है बिना लडे ही ,हार मान जाना ठीक नहीं,
अपने-अपने तरकश से तीर, हर कोई निकाल रहा है।।
खूब लगाओ दम अपना, जो देखा है तुमने सपना।
आज नहीं तो कल होगा पूरा ,अनुनय हल निकाल रहा है।।
राजेश व्यास अनुनय