जीते हैं अपने लिए अपने लिए मरते हैं।
गज़ल
2122……1122…….1122…..22
जीते हैं अपने लिए अपने लिए मरते हैं।
दीन दुनियाँ की कभी बात नहीं करते हैं।
मुफलिसी की न यहाँ बात कोई करता है,
आओ सब मिल के यही दौर शुरू करते हैं।
जिंदगी को न किसी के भी हवाले करिए,
नाखुदा बनके चल़ो आगे सफर करते हैं।
होश बेहोश हुए पी के वो दो ही प्याले,
मैकदे को भी यूँ बदनाम किया करते हैं।
जिंदगी जिंदा दिली से भी तो जी कर देखो,
जख़्म खुद अपने ही हम रोज सिया करते हैं।
प्यार में दर्द भी आशिक को दवा है यारो,
इसलिए दर्द को भी हँस के सहा करते हैं।
जिंदगी जंग हैं लड़ते ही हमें रहना है,
हार जाते हैं वही डर के गुजर करते हैं।
साथ हम सब हैं तो घबराने की बातें छोड़ो,
आओ हिम्मत से चलो काम शुरू करते हैं।
जिन्हें मालूम नहीं चाँद कहाँ है प्रेमी,
चाँद पाने के लिए व्यर्थ ही मचलते हैं।
…….✍️ प्रेमी