जीतें तो सभी!
जीतें तो सभी है,पर!लक्ष्य विहीन होते हैं।मानव की देह में रहकर,हम राक्षस की तरह जीते हैं।अमृत को छोड़कर , सभी जहर का प्याला पीते हैं।भूरी भूरी प्रसंशा के दिवाने होते हैं। कैसे? ये सभी स्वार्थ के वशीभूत होकर जीते हैं।समय का खेल देखो, बुद्धिमान को पीछे छोड़, कालीदास बन जाता है।कब?कौन? कैसे? परिवर्तन बन जाता है।जब मानव की समझ से परे हो,तो विधान बन जाता है।