जीतने की मंजिल
सिरफिरे हो तुम,
जो अजीब शौक रखते हो,
दिन-रात खोजते हो जीतने की मंजिल,
हारने के बाद भी जश्न मनाते हो ।
ठहरते नहीं हो ,
न ही दुख का गम जताते हो,
ऐसा क्या चिराग है तुम्हारे पास ,
बड़ी हिम्मत से पुनः कोशिश कर जाते हो ।
टूटते नहीं हो ,
गहरे जख्म सह जाते हो,
भुलाकर दर्द दिल से फिर ,
पागलों की तरह तिनका-तिनका जोड़ने लग जाते हो ।
कमजोर नहीं हो ,
गिर जाने पर भी खड़े होते हो ,
लग जाते हो निरंतर अभ्यास में ,
बस एक ख्वाब सजाते हो मंजिल जीत जाने को ।
??
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।