जीजा जी ।
सन 1984 , 1985 की बात होगी।हम इलाहाबाद में 12 वीं में पढ़ते थे। अब इलाहाबाद में रहें और इलाहाबादी रंग न चढ़े तो इलाहाबाद का घोर अपमान। बंक मारकर पहली फ़िल्म बेताब देखे। फ़िल्म का देखे पूरा टॉर्चर हुए। गेट पर कोई आवाज आती तो लगता हमारे यमदूत जीजा जी पधार गए हैं। तब हाजमा ठीक था वरना कितनी बार पतलून पीली हुई होती कहना मुश्किल है। ख़ैर फ़िल्म देखी घर आये जीजा जी दुआरे पर ही विराजमान थे। पूछे कहाँ से घूमकर आये हो ? हमने कहा कालेज से , कालेज से मडगार्ड पर तो तुम्हारे कालेज की पर्ची नहीं है। सच कहूं इतना सुनते ही 33 करोड़ देवता याद आ गए। कुछ देर के लिए तो दोर्णाचार्य की हालत हो गयी। समझ नहीं आया जो सुन रहा हूँ वह सही है ये जो मैं करके आया हूँ वह सही ही।
मैंने जीजा जी से कहा आप क्या कह रहे हैं मेरी समझ में नहीं आ रहा। जीजा बोले ये साइकल कालेज में नहीं थी।
मैं तुरन्त समझ गया। मैंने कहा जीजा जी मेरे दोस्त की दादी स्वरूप रानी अस्पताल में एडमिट है मैं वही गया था।
जीजा जी तो संतुष्ट हो गए।
पर में सारी रात असंतुष्ट होकर ये गाना गाता रहा।
जब हम जवा होंगे जाने कहाँ होंगे ,
लेकिन जहां होंगे वहां फरियाद करेंगे,
तेरी याद करेंगे