जिस दिल में ईमान नहीं है,
जिस दिल में ईमान नहीं है,
कुछ भी हो इंसान नहीं है।
नामाक़ूल रहोगे, जब तक,
नीयत में पैमान नहीं है।
क्या लाये जो खोया तुमने..?
शायद गीता ज्ञान नहीं है।
बेबस सब कुदरत के आगे,
कोई यहाँ भगवान नहीं है।
आँखें गर मंज़िल पर हों तो,
रोक सके, तूफान नहीं है।
क्या बेचें, क्या खायें यारो..?
घर में अब सामान नहीं है।
दर्द सुकूं सब देता है यह,
क्या पत्थर में जान नहीं है ?
कौन यहां अब सुनता किसकी,
आपस में पहचान नहीं है।
अब दुनिया में जीना मुश्किल,
मंज़िल भी आसान नहीं है।
रोज़ नया इक फ़त्वा साहब,
क्या इस से नुकसान नहीं है ?
आज नसीहत देता है वो,
जिसका कोई मान नहीं है।
ख़्वाब बड़े ऊंचे इंसां के,
दो पल का मेहमान नहीं है।
मैं बेबस सा एक “परिंदा,”
अब कोई अरमान नहीं है।
“पंकज शर्मा “परिंदा”🕊