जिस्म का बाज़ार है बस
सजा फिर जिस्म का बाज़ार है बस
भुला दे सब ख़बर, अखबार है बस
ये दुनियाँ छोड़ दूँगा मैं उसी पल
तुम्हारी ना की ही दरकार है बस
भले ही मारलो पत्थर उसे तुम
तुम्हारे इश्क का हकदार है बस
जिसे साहिल समझता था खुदा मैं
नही कुछ और वो मझधार है बस
मुहब्बत कह रहे हो ‘अश्क़’ जिसको
मेरी नाकामी का हथियार है बस
– ‘अश्क़’