जिस्मानी इश्क
इश्क मुहब्बत प्यार करो, हसी ठिठोली यार करो।
रखिए अंकुश स्पंदन पर, यूं जीवन न बेकार करो।।
नदियां समुद्र जीवन सब, सीमाओं में अच्छे लगते है।
नाले तालाब है उफान पर, हां तुम कहते ये बच्चे हैं।।
तुम कहते हो तो कहो, ये सब सह सकते तो सहो।
इश्क बीमारी हो रही है, मंजूर है ऐसे ही तो रहो।।
ये सैलाब नदियों तालाबों का, समंदर तक न जायेगा।
सफर पूरा नहीं मुमकिन, और ये तो दम तोड़ जायेगा।।
तुम्हे बहना जो गर साथ में, तो यूं ही तुम बहते रहो।
हम तो है बागी ही ‘संजय’, बस सच कहो कहते रहो।।
जय हिंद