जिसे हम गुनगुना आये
जिसे हम गुनगुना आये बड़ा सुंदर तराना था
थे हम भी आँख के तारे हमारा भी जमाना था
अरे ओ झोपड़ी वालों न यूँ आँखें दिखाओ तुम
किराये के मकानों में हमारा भी ठिकाना था
न इतराओ यूँ फैशन में हमें नादान मत समझो
हमारी भी अदाओं का कोई पागल,दिवाना था
खड़े थे मेरे अपने ही लिए जब हाथ में खंजर
तो फिर हम मुस्कुराए हमको तो बस मुस्कुराना था
न कोई ताज़ न तो राज की ख्वाहिश रही हमको
घनी जुल्फों का साया ही हमारा आशियाना था
शहर तुमने चुना हमने उठा ली गाँव की माटी
तुम्हें पैसा कमाना था,हमें रिश्ता निभाना था
मिसालें क्यों दिया करते हो जालिम ताज की यारों
लहू में डूबकर उभरा बड़ा कातिल फ़साना था
न समझो प्यार को मेरे यूँ ही बस आजकल वाला
मोहब्बत का ये किस्सा तो कई सदियों पुराना था
जिसे नादान बैठी थी समझकर दुनिया ये ‘संजय’
बताया वक्त़ ने आकर वही सबसे सयाना था