जिसे सिखलाया बोलना…..2122 १२२२ 2212
चश्म नम और दामन तर होने लगा
जिन्दगी सादगी से बसर होने लगा
जो निचोड़ के रखा है अपना आस्तीन
अब पसीने से नम कालर होने लगा
दाउदों के पते पूछो तो हम कहें
पाक-दोहा कभी तो कतर होने लगा
बाज आऊं बुरी हरकत से मै कभी
मय नशी में इधर-ऊधर होने लगा
अब मेरी मंजिलो के मिलते हैं निशान
पांव के छालो का असर होने लगा
बेजुबां बुत जिसे सिखलाया बोलना
पलटते ही मेरे पत्थर होने लगा
सुशील यादव