जियें कैसे कहो खिल के
सज़ी महफ़िल मज़े लूटे,सभी ने यार हैं मिलके ।
हमीं निकले अभागे बस, कहें क्या हाल अब दिल के ।
शराफ़त पाँव की बेड़ी, उसूलों ने हमें रोका ।
तरसते ही रहे अब तक, जियें कैसे कहो खिल के ।
दीपक चौबे ‘अंजान’
सज़ी महफ़िल मज़े लूटे,सभी ने यार हैं मिलके ।
हमीं निकले अभागे बस, कहें क्या हाल अब दिल के ।
शराफ़त पाँव की बेड़ी, उसूलों ने हमें रोका ।
तरसते ही रहे अब तक, जियें कैसे कहो खिल के ।
दीपक चौबे ‘अंजान’