जिन रिश्तों को बचाने के लिए या अपनी ज़िंदगी मे उनके बने रहने
जिन रिश्तों को बचाने के लिए या अपनी ज़िंदगी मे उनके बने रहने के लिए ऊपर वाले से कभी प्रार्थनाएं करते रहते थे।
वो आज हमारे साथ नहीं हैं। फिर भी, उन प्रार्थनाओं के पूरी ना होने का कोई मलाल तक नहीं हैं ज़ेहन में।
वो रिश्ते जिनके बिना जीने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे। वो आज महज़ एक ‘याद’ बन के रह गए हैं।
वो शख्स जिसे पूरी दुनिया मान चुके थे कभी।जिससे पल भर की दूरी हमें अज़ीयत के किसी गहरे कुएं में धकेल देती थी। आज वो शख्स हमारे इर्दगिर्द कही भी नहीं है।फिर भी, ज़िंदगी वैसी ही चल रही जैसी थी।
“किसी के बिना किसी की ज़िंदगी नहीं रुकती” ये बात हम तब तक नहीं मानते जबतक वो लोग हमें छोड़कर नहीं जा चुके होते हैं, जिनके बिना हम एक पल ना रह पाने के दावे करते थे।
हम खुद को ये सफाई देकर बहला देते हैं कि शायद ‘ऊपरवाले’ की यही मर्ज़ी थी।
इस दुनिया मे अगर हम किसी को सबसे ज्यादा बेवकूफ बनाते हैं तो वो खुद हम हैं।
अक्सर हम दूसरों से शिकायत करते हैं कि वो बदल गए हैं। हमारे साथ पहले की तरह नहीं रहते, लेकिन क्या हम भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे ?
क्या कभी हमने खुद से ये सवाल किया हैं ?
हम नहीं करते खुद से सवाल हमारे सवाल सिर्फ दूसरों के लिए होते हैं। हमारी शिकायतें सिर्फ दूसरों के लिए होती हैं।
वक़्त कभी भी नहीं बदलता। वक़्त के साथ सिर्फ हमारी ज़रूरतें, इच्छाएं और हमारी प्राथमिकताएं बदलती हैं।
यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं हैं।