जिन रास्तों से गुज़रा करता था मैं कभी
जिन रास्तों से गुजरा करता था मैं कभी
वो रास्ते बन हमसफ़र मुझे याद आते हैं।
उन रास्तों के सीने पर कदमों के कुछ निशान
बन कर मेरे हबीब मुझे याद आते हैं।
जिन हसरतों से वाकिफ़ हो कर रहा कभी
उन हसरतो के मंज़र मुझे याद आते हैं।
जिन खूबसूरत से पलों को था जिया कभी
वो खुशनुमा से पल मुझे याद आते हैं।
जिन मील पत्थरों को मिल कर चला कभी
उन के अजब मुनारे मुझे याद आते हैं।
जिस शख्स का हमदम बन कर रहा कभी
उस शख्स के इशारे मुझे याद आते हैं।
जिस के अजीम रश्क का शाहिद रहा क़भी
उस की आंखों के सितारे मुझे याद आते हैं।
विपिन