जिन्हें हम कूटना चाहें (हास्य ग़ज़ल)
जिन्हें हम कूटना चाहें, वो अक्सर भाग जाते हैं
बुरा हो डरने वालों का, वो क्यों ना हाथ आते हैं
पिटें अब किस तरह वो भी, कभी पिटते थे हम जिन से
निकल जाते है तब आँसू, वो सारे साथ आते हैं
उन्हीं ने दाँत तोड़े थे, उन्हें ज़्यादा ही खुजली थी
जहाँ दिख जाएँ वो भइया, उन्हीं के गीत गाते हैं
रहे ऐ साले तू पिटता, तुझे पीटे कोई जमकर
जिन्हे क़िस्मत में पिटना है, वो फिर ना हाथ आते हैं
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