जिन्दगी
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विधा-गीतिका
आधार छन्द-चौपाई
विधान-16 मात्रा,अंत में 21/गाल वर्जित,आदि में द्विकल+त्रिकल+त्रिकल वर्जित,मापनीमुक्त।
समान्त-आर पदान्त-जिंदगी
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होती केवल प्यार जिंदगी
अपनों का संसार जिंदगी।
फँसी हुई मँझधार जिन्दगी
कैसे होगी पार जिन्दगी।
फूलों की शैय्या मत समझो
है काँटों का हार जिन्दगी।
व्यर्थ समय को नहीं गँवाना
समझाती हर बार जिन्दगी।
औरों के जो काम न आये
ऐसी तो बेकार जिन्दगी।
ईश्वर याद हमें तब आते
जब होती लाचार जिन्दगी।
मानव तन तो पाया लेकिन
कर न सके साकार जिंदगी।
माँ का आशीर्वाद न ले जो
उसकी है धिक्कार जिन्दगी।
रूपया पाने की चाहत में
देखो बनी कतार जिन्दगी।
पलती दहशत के साये में
सीमा के उस पार जिन्दगी।
डॉ. दिनेश चंद्र भट्ट