जिन्दगी
जिन्दगी
जिन्दगी कल भी थी,जिन्दगी आज भी है ।
जिन्दगी कल भी रहेगी ,निश्चित नहीं है ।
जिन्दगी दिखती भी है ,अदृश्य भी है ।
यह तन रहे या न रहे,जिन्दगी फिर भी है ।
पहचान बदल बदल जाती, सतत चलती जिन्दगी ।
जन्म से मृत्यु एक पड़ाव ,पूरा करती जिन्दगी ।
सीखती सुधरती हर बार,खत्म नहीं जिन्दगी
संसार के बाहर या भीतर,साथ सदा जिन्दगी ।
सुख और दुख का कारण,बनती रही जिन्दगी ।
समिष्टी से मिलन तक,अनवरत है जिन्दगी
पुत्र,पिता परिवार सबसे , रिश्ते निभाती जिन्दगी।
हँसी खुशी व दुखों के कष्ट में ,कटती रहती जिन्दगी।
अपनों की चिन्ता फिक्र में ,व्यतीत होती जिन्दगी ।
वैभव व दौलत में उलझे,समझ न आई जिन्दगी ।
भूल कर निज लक्ष्य अपना,भटक रही है जिन्दगी।
भाग्य से मिलते सदगुरू जब,सफल होती जिन्दगी ।
राजेश कौरव सुमित्र