जिन्दगी
विधा – मनोरम छंद
मापनी – 2122 2122
तुकान्त – (1) एली, अते (2) एरा, आगे (3) आना, अना (4) अला है, आकर ।
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जिन्दगी है इक पहेली।
पर लगे सच्ची सहेली।
दृश्य हैं हर पल बदलते।
बीत जायें तब समझते।____01
है मनुज पर राज तेरा।
रातभर या हो सवेरा।
सोचते रहकर न जागे।
जानकर भी वे अभागे।_____02
जिंदगी सुख का ठिकाना।
पर गमों को मत छिपाना।
हारकर पीछे न हटना।
जीत कर है धैर्य रखना।____03
जीतना जीवन कला है।
दुश्मनी ना हो भला है।
नफरतें दिल की मिटाकर।
सोच निज ऊँची दिखाकर।____04
नीरज पुरोहित घोलतीर(रूद्रप्रयाग)उत्तराखण्ड