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27 Dec 2019 · 1 min read

जिन्दगी

——-जिन्दगी———
——————
जिन्दगी गिरगिट सी छलिया
हर रोज नये रंग बदलती है

इंसान बदलते रंगों से है दंग
ये पोशाक से रंग बदलती हैं

नये कल का देकर वो झांसा
आज को कल में बदलती है

यह होती है बहुत फितरती
फितरत में खूब जकड़ती है

जन्मदिन खुशी की आड़ में
जीवन काल छोटा करती है

नया दिन जीने की चाहत में
उम्र हर रोज घटती रहती है

कर्म में कर सब को संलिप्त
जीवन को संक्षिप्त करती है

नहीं आता भेद जिन्दगी का
मानव जीवन को भेदती है

जिंदगी है एक चक्रव्यूह सी
चक्रव्यूह में फंसाए रहती है

जिंदगी हो जाती मुकम्मिल
अभिलाषाएं अधूरी रहती है

सागर सी तेज बहती जिंदगी
साहिल पर ही जा ठहरती है

चिकनी मिट्टी सी यह चिकनी
हाथ से रहे सदा फिसलती है

जिन्दगी तो होती है फुलवारी
सुखविंद्र फूलों सी महकती है

जिन्दगी गिरगिट सी छलिया
हर रोज नये रंग बदलती है

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258

Language: Hindi
2 Comments · 220 Views
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