जिन्दगी.
मुक्तक
————
1.
जिन्दगी का हर डगर, फूंक कर चल रहा हूँ मैं,
हर कांटा देख, सलीके से , पाव धर रहा हूँ मैं।
कदम कदम पे ठोकरें, जैसे रखीं हो मेरे हीं खातिर,
बीते कई वर्ष, जीवन को आज भी समझ रहा हूँ मैं।।
2.
तरस रहा मन मेरा फिर से,झूमने,नाचने,गाने को,
बीत चुके उन कठिन पलों को एक पल भूल जाने को।
जिन्दगी ने अबतक जीन झमेलों मे जकड़ा हुआ हमें,
उन तमाम झमेलों से मुक्त , हर पल से दूर जाने को।।
3.
कुछ रोकर कुछ रूलाकर अबतक जीया मैने,
जिन्दगी के फटी को बीन चाहे भी सीया मैने।
माना मेरे पीने का जहर औरो से कुछ कम था,
फिर सी इस जिन्दगी का जहर हसकर पीया मैने।।
4.
जो कुछ भी मिला अबतक जिन्दगी में कम ही मिला,
फिर भी इस जिन्दगी से नहीं हमे अब कोई गीला।
अब रखा ही क्या है इन शिकवा और शिकायतों में,
जहाँ जैसे जब जितना जो मिलना था वही तो मिला।।
©®°………..
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”