जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
कश्मकश भरी जिन्दगी है,
कहती एक कहानी है,
बेहाल है जीवन जीना,
उम्मीद के भी हाथ खाली है,
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
साया प्रताड़ित गरीबी का ,
मांँगती कोई जीवन साथी है,
रुकते नहीं अश्क़ आँखो में,
बेदर्द सताती हुई जवानी है ।
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
कड़ी धूप में ओढ़ घूँघट को,
चन्द पैसो के लिए पसीना बहाती है,
चीरती हुई नग्न निगाहें,
बेपर्दा होने का एहसास दिलाती है ।
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
हुस्न के इस चक्कर में,
मासूमियत चेहरे में भारी है,
पेट की आग बुझाने को,
चाँद में भी दाग निभानें है,
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
जीवन की नैया अस्त-व्यस्त है,
सुकून की बारिशों के लिए धरा प्यासी है,
दुर्दशा गरीबी में दम तोड़ती आबरू है,
मिट गये भाग्य के निशान,
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा ज़िला हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) ।