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12 May 2017 · 1 min read

जिन्दगी यह वसीयत हुई

गजल
☞☜☞☜

जिन्दगी यह वसीयत हुई
साथ मेरे सलामत हुई

जब तलक देखती हूँ तुझे
सब अंगों में नजारत हुई

ख्याल जो आपका आ गया
रोज हर खास बरकत हुई

आज तन्हा लगे जब जहाँ
पास आने से कुर्बत हुई

शाम तेरी महकती रहे
इसलिए तो मुहब्बत हुई

आग इतनी लगी इश्क में
बस समझ से हिमाकत हुई

साथ तूने निभाया तभी
ताज सी तू इमारत हुई

दिल कहीँ मेरा नहीं अब लगे जब
चाह में शायद कयामत हुई

नजारत–ताजगी
कुर्बत—नजदीकी
हिमाकत — तरफदारी

डॉ मधु त्रिवेदी

75 Likes · 1 Comment · 396 Views
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