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14 May 2017 · 1 min read

जिन्दगी यह वसीयत हुई

जिन्दगी यह वसीयत हुई
साथ मेरे सलामत हुई

जब तलक देखती हूँ तुझे
सब अंगों में नजारत हुई

ख्याल जो आपका आ गया
रोज हर खास बरकत हुई

आज तन्हा लगे जब जहाँ
पास आने से कुर्बत हुई

शाम तेरी महकती रहे
इसलिए तो मुहब्बत हुई

आग इतनी लगी इश्क में
बस समझ से हिमाकत हुई

साथ तूने निभाया तभी
ताज सी तू इमारत हुई

दिल कहीँ मेरा न लगता है कभी
चाह में शायद कयामत हुई

डॉ मधु त्रिवेदी

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