जिन्दगी न मिलेगी कभी दुबारा
जिन्दगी न मिलेगी कभी दुबारा
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जिन्दगी न मिलेगी कभी दुबारा,
यूँ न गलियों में घूमिये आवारा।
आधे अधूरे काम करने है पूरे,
खुलेगा खुशियों का भरा पिटारा।
जो खो गया है उसको है पाना,
अपनों से भरपूर जगत हो न्यारा।
छोड़ो कल की बाते, हुई पुरानी,
नये ज़माने के संग हो नज़ारा।
ढूँढते रहिये खुद में ही सहारा,
नही रहोगे तुम कभी बेसहारा।
एक सिक्के के होते हैं दो पहलू,
दुखों बिना नही सुख होंगें गवारा।
मनसीरत कहता आया सुन भाई,
कम ज्यादा होता रहता है पारा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)