जिन्दगी की धूप-छाँव
जिन्दगी की धूप-छाँव
जिन्दगी की धूप – छाँव को अपना मुकद्दस खुदा समझें
जिन्दगी में ग़मों से डरकर , पीछा छुडाएं क्यों
इस दुनिया में शोहरत के पीछे , भागते हैं लोग
खुदा की निगाह में शोहरत हो . कुछ ऐसा करें
दूसरों के महलों को , निहारने में क्या रखा है
अपना खुद का आशियाँ महलों सा रोशन हो . कुछ ऐसा
करें
‘एक अजीब सी खामोशी के तले . दबे पड़े है लोग
दिल का दर्द जुबान बयाँ करने लगे, कुछ ऐसा करें
दो चार आंसू पोछ देना नाकाफी है . इस जिन्दगी के लिए
हर एक चेहरे पर खुशियाँ महके , कुछ ऐसा करें
जिन्दगी की धूप – छाँव को अपना मुकद्दस खुदा समझें
जिन्दगी में ग़मों से डरकर , पीछा छुड़ायें क्यों
इस दुनिया में शोहरत के पीछे , भागते हैं लोग
खुदा की निगाह में शोहरत हो . कुछ ऐसा करें