जिन्दगी की डोर
जब तलक
जुड़ी हैं
जिन्दगी , सांस से
उड़ती है पतंग
आसमां में
अनजान जगह
अनजानों के बीच
उड़ती है पतंग
बैरानी सी आसमां में
देखती आसमां से
पतंग
दुनियां की बेवफाईयाँ
सब तरफ है
लूट खसोट और
हैवानियाँ
अपनी ऊँचाईयों पर
इतना मत इतरा
ऐ इन्सान
जब तलक
जुड़ी है डोर
उड़ती रहेगी
ये पतंग
न जाने कब
कट जाऐगी
जिन्दगी की ये डोर
गुजारेगी
गुमनाम सी
जिन्दगी
ये पतंग
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल