जिन्दगी की किताब
दिल किया क्यूँ न आज जिन्दगी की किताब लिख दू।
कुछ अधूरे,कुछ मुकम्म्ल रिस्तों की दास्ताँ लिख दू।।
कुछ दर्द की आवाज लिख दू,,कुछ मलहमों के नाम लिख दू।
कुछ अधजगी रातों का किस्सा,और कुछ रिस्तों के स्वार्थ का हिस्सा लिख दू।।
दिल किया क्यूँ न आज—————–
कुछ बन्दिशों के नाम लिखू,कुछ दिल की धड़कनों की परवाज़ लिखू।।
दिल के दर्द की तडप लिख दू,लोगो के दोहरे चरित्र की दास्ताँ लिख दू।।
दिल किया क्यू न ———————–
लिखू मैं मेरे अपनो की कहानी,गुजरती जिन्दगी की रवानी,
लिखू मैं मन के संदेह के घेरे,जज्बातों पर लगे दुनियाँ के पहरे।।
गुजरती उम्र की बाते लिख दू,जब कभी नींद नही आये वो राते लिख दू।।
दिल किया—–
दरकतें रिस्तो की सच्चाई लिख दू,आस्तीनों के साँपो की कहानी लिख दू।
मेरी माँ के स्पर्श का मार्मिक एहसाश लिख दू,।
मेरे पिता की डाट के पीछे के जज्बात लिख दू।।
समेट लू उम्र के हर एक पन्ने को, फिर भी बहुत कुछ छुट जायेगा,
क्यूँ न पहले पन्ने से मेरे दिल की हर आवाज लिख दू।।