जिन्दगी और दौड़
चल न सका
जो तेज
जिन्दगी की
दौड़ में
पिछड़ गया
वो मंजिल की
राह में
मिलती है
सफलता
जब
जीवन में
चेहरे की
चमक
बयां
करती है
मंजिल
पाने की
बिखरी जब
आभा
क्षितिज पर
चिड़ियों की
चहक से गूंजीं
हर दिशा
निकला जब
सूरज
हर दिशा
फैली कांति
लालिमा की
करो स्वागत
हर नयी
सुबह की
जहाँ हो
सुख शांति
समृद्धि और
भाईचारा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल