जिन्दगी एक दौड
खुद को साबित करते करते यूहीं उम्र बीत जाती हैं ।
वक्त बहुत लग जाता है,
जब यह दुनिया समझ में आती है।
दोहरे चरित्रो की थाह,
कहाँ समझ में आती है,
खुद को साबित करने में
उम्र बीत जाती है ।
लोग खुद को नेक और
भगवान के बन्दे कहते हैं,
तंग दिल है इनका
और विष से भरे है सब,
इनको कहाँ कभी
इंसानियत पसंद आती है ।।
हर राह में पत्थर है
लेकिन चलना तो लाज़िमी है ,
ठोकरे खा कर ही तो
चलने की समझ आती है ।
मैं कदम चलता रहा
और जमाना चाल चलता है ।
सत्य क्या है यह बात
आखिर ‘सत्य’ को समझ आ ही जाती ह।।
खुद को साबित करने में उम्र बीत जाती है ।