जिनके सपने ही सबको सुहाने लगे।
गज़ल
212…….212…….212……212
जिनके सपने ही सबको सुहाने लगे।
देख कर सब उन्हें प्यार करने लगे।
जिनको पाने की दिल में रही आरजू,
पा के उनको खुशी से उछलने लगे।
मेरे महबूब की इक झलक के लिए,
चांद सूरज जमीं पर उतरने लगे।
हर उचाई को पाने से पहले गिरे,
हाँ गिरे और गिर कर सँभलने लगे।
देश आगे बढ़ा तो बताओ ये क्यों,
ठंड से ल़ोग सड़कों पे मरने लगे।
भूखे टूटे गरीबों के ही नाम पर,
सच यही पेट सब अपना भरने लगे।
देश अपना है अच्छा जहां से सभी,
बनके प्रेमी सभी उस पे मरने लगे।
……✍️ सत्य कुमार प्रेमी