जिनके घर में घोर ॲधेरा”नवगीत”
जिनके घर में घोर ॲधेरा दिया लिये हैं हाथों में ।
कांचों के घर में रहते हैं लेकिन पत्थर हाथों में।।
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कींचड़ फेंक रहे औरों पर।
डोरे डाल रहें भौंरों पर।
कृत्रिम सुमन खिलाकर खुशबू फैलाते हैं रातों में।
जिनके घर में घोर ॲधेरा दिया लिए हैं हाथों में।।
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चिकनी चुपड़ी बातों से वह।
सच को झूठ बताते हैं कह।।
सीधे सरल किसानों को वह उलझाते है बातों में।
जिनके घर में घोर ॲधेरा दिया लिए हैं हाथों में।।
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रोटी तोड रहे मुस्टंडे।
उनके बीच घुसे कुछ गुंडे।।
भटकाएं कैसे भी उनको लगे हुए उत्पातों में।
जिनके घर में घोर ॲधेरा दिया लिए हैं हाथों में।।