जिधर भी देखिए उधर ही सूल सूल हो गये
ग़ज़ल
जिधर भी देखिए उधर ही सूल-सूल हो गये
न जाने कैसे इस चमन में ये बबूल हो गये
ज़मीर बेचते थे अपना कौड़ियों में कल तलक
वो आज पुर-वक़ार और बा-उसूल हो गये
उजाले चाहते थे उनकी आँखें छीन ली गयीं
तो ये अँधेरे ख़ुद-ब-ख़ुद उन्हें क़ुबूल हो गये
खड़े हुए थे शान से महल जो सीना तान के
पड़ी जो मार वक़्त की तो धूल-धूल हो गये
सजे हैं फूल दान में ‘अनीस’ जो भी शान से
वो जितने ख़ार कल तलक थे आज फूल हो गये
– अनीस शाह ‘अनीस ‘