जिद्दी
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जिद्दी मन का ये विहग, नहीं मानता हार।
उम्मीदें घायल करे, उड़ता पंख पसार।। 1
जिद्दी सी हूँ बावरी, सुध-बुध खोती पाँव।
फिर भी प्यार दुलार से, खेती रिश्ते नाव।। 2
जिद्दी मन करता वही, जो लेता है ठान।
मुश्किल से लड़कर सदा, हासिल करे मकाम।। 3
मंजिल है जिद्दी बड़ी, होती नहीं करीब।
करें भरोसा आप पे, भगवन लिखे नसीब।। 4
कितनी आतुरता रही, करने को हर काम।
जिद्दी मंजिल की रही, कब सोचा अंजाम।। 5
हठ, जड़, जिद्दीपन कभी, बन जाता जंजाल।
बैठे ही बिन बात के, बुलवा लेता काल।। 6
हठ, जद, जिद्दीपन सदा, होता जड़ों समान।
अन्दर-अन्दर उतरता, गहरा सीना तान।। 7
? ? sp? ?—लक्ष्मी सिंह ? ☺