Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Apr 2021 · 10 min read

जिद्दी मुर्गा

भगतराम और कोकिला की कोई संतान न थी । दोनो जीवन के अंतिम दौर से गुजर रहे थे । भगतराम की बाजुओं में अब इतना बल न बचा था कि उदर पोषण हेतु कही रोज़ी पर जाए । दोनों ने अपने शेष दिनों को सुख पूर्वक बिताने एवम संतान सुख की अभावता की पूर्ति हेतु एक मुर्गे को पाल रखा था जिसका नाम दोनो ने रामु रख दिया । दोनो पति पत्नी अपने बच्चे की तरह उसका ध्यान रखते । मुर्गा भी बहुत समझदार और वफादार था । उसके लिए भगतराम और कोकिला ही सब कुछ थे ।

चैत का सीजन था गांव के लगभग सभी लोग मजदूरी से गेंहू काटने हेतु संपन्न एवं बड़े जिराती वाले गांव को जा रहे थे । ये देखकर मुर्गा भी आकर भगतराम और कोकिला से जिद करने लगा कि,

“बाई- दादा (मम्मी पापा) मैं भी लोगो के साथ कटाई के लिए जाऊंगा । जिससे अपने घर मे खाने के लिए अन्न आ जाएगा” ।
दोनो पति पत्नी सोच में पड़ गए कि ये मुर्गा कैसे कटाई कर लेगा ? गाँव के लोगो के साथ जा रहा है अगर किसी ने इसे पकड़कर तरकारी बनाकर खा लिया तो हमारा क्या होगा हम किसके सहारे जियेंगे ? बस यही चिंता उन्हें खाये जा रही थी ।

रामू भी अकेले कटाई के काम की खोज में निकल पड़ा | जाते -जाते रास्ते में एक बड़े रकबे वाला खेत देखकर रुक गया और भूमि स्वामी को ढूंढने लगा जो उस क्षेत्र के बहुत बड़े सेठ थे |

सेठ जी को सामने पाकर रामू ने उनके समक्ष सारे फसल की कटाई का प्रस्ताव रखा | ये सुनकर सेठ को विश्वास नही हुआ फिर भी उसने रामू को सहमती दे दी |

अब रामू फसल कटाई के बारे में सोच ही रहा था कि अचनक उसने देखा की उस खेत में कुछ चूहे इधर उधर दौड़ – भाग कर रहे थे | और उसके साथ साथ गेहू की सुखी फसल को दांतों से कुतर- कुतरकर नुकसान भी कर रहे थे | ये सब देखकर रामू ने उनको अपने पास बुलाकर उनसे कहा कि “देखो चूहों मैंने इस पूरे खेत की कटाई का ठेका अकेले ही इस खेत के मालिक से लिया है और तुम लोग है की सूखी फसल को कुतर कर फसल को नुकसान पहुंचा रहे हो | अगर मैं चाहू तो तुम्हे इस कृत्य के लिए इस खेत के मालिक को बोलकर सजा भी दे सकता हूँ | अगर तुम लोग चाहते हो की मैं ऐसा न करू तो तुम लोगो को मेरी एक बात माननी पड़ेगी |”

ये सुनकर सारे चूहों का झुण्ड सजा से बचने के लिए रामू की शर्त मानने को तैयार हो गए |

रामू ने उनको शर्त के बारे में समझाते हुए कहा कि “देखो तुम सबको सुबह तक ये गेहूं की खड़ी फसल को अपने दांतों से कुतरकर छोटे – छोटे गट्ठे बनाकर रखने है |” ये सुनकर सारे चूहों ने हां भर दी |

सुबह जब सेठ जी खेत देखने के लिए आये तो देखकर दंग रह गए | सारी गेहू की फसल कट चुकी थी और एक तरफ खेत में बने खले में इकट्ठे भी हो चुके थे | सेठ जी, रामू से बहुत खुश हो गए और कहने लगे कि “वाह यार तुम एक साधारण मुर्गे नही हो सकते तुम तो बहुत काम के हो | बताओ तुम मेहनताना के गेहू कैसे ले जाओगे ? तुम जितना बोलोगे मैं देने के लिए तैयार हूँ |

“सेठ जी एक काम करो तुम मेरे दोनों कान में मेरे मेहनताना के गेहू रख दो”

(सेठ जी ने सोचा कि ठीक है इस मुर्गे के कान में ज्यादा से ज्यादा 4 से 5 दाने समायेंगे होंगे)

सेठ जी ने रामू के कान में गेहू भरना आरम्भ किया तो भरते ही रह गए | सेठ जी बड़े अचंभित हुए जा रहे थे | अभी तक तो सिर्फ एक ही कान में पांच क्विंटल गेहू समां चूका था | रामू ने सेठ जी से दुसरे कान में और पांच क्विंटल गेहू भरने को कहा सो सेठ जी को भरना ही पड़ा |

अब रामू गाँव की चल पड़ा | रास्ते में उसकी भेंट एक पडोसी से हुई जो बैलगाड़ी से घर ही जा रहा था आवाज देकर रामू ने उससे कहा कि “ भैया – भैया मेरे मम्मी – पापा को जता देना कि घर के ऊपर मंगरी में एक छेद कर देना |”

खबर पाकर भगतराम ने ऐसा ही किया | कुछ ही देर में रामू आया और सीधे मंगरी के ऊपर बैठ गया और ऊपर से दोनों कानो से सारा गेहू खाली कर दिया आधा घर अन्न से भर चूका था | ये देखकर भगतराम और कोकिला बहुत खुश हो गए | नीचे आकर रामू भगतराम से कहने लगा कि –

“पापा – पापा देखो अब मैं बड़ा भी हो गया हूँ और कमाई भी करने लगा हूँ तो अब मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए कोई लड़की ढूढो अब मेरी उम्र शादी की भी तो हो गई ” |

“हाँ बेटा, देखूंगा जरूर तेरे लिए, कोई पोंज (मुर्गी) जो तेरे जोड़ में मिल जाये ” |

“नही ! पापा मुझे कोई पोंज – वोंज नही बल्कि लड़की ही चाहिए, मुझसे अब मम्मी की परेशानी देखी नही जाती, बेचारी अब इस उम्र में भी क्या चूल्हे पे रोटी ही थापेगी क्या ? उनको आराम चाहिए कि नही |”

बेचारे भगतराम धर्मसंकट में तो फंस ही चुके थे | उन्होंने हामी भर दी की वे कल ही बहु की तलाश में पास के गाँव में जायेंगे |

अगले दिन ही भगतराम रामू के लिए लड़की देखने निकल पड़े | मन में थोडा भय भी था लेकिन अपने पाले हुए वफादार रामू के जिद के आगे वह करता भी क्या था |

उस ज़माने में जब बड़े बूढ़े अपने पुत्र के लिए स्वयं पुत्रवधु देखने जाते थे तो लड़की वाले उनका मान रखने के लिए लड़के को बिना देखे ही अपनी पुत्री को लड़के के पिता या अभिभावक के साथ भेज देते थे | शादी ब्याह की रस्म भी वही एकतरफा ही हो जाती थी | इसी तरह ही भगतराम भी रामू की होने वाली दुल्हन को साथ लेकर घर आ गए |

दिनभर से शाम हो गई नई नवेली दुल्हन सुलोचना बड़ी बेसब्री से अपने होने वाले पति रामू का इंतज़ार कर रही थी | अपने ससुर याने भगतराम से पूछने पर वह भी जवाब दे देते है कि “क्या है बहुरानी रामू की आदत है न कि उसके पैर कभी घर में नही टिकते, गया होगा अपने दोस्तों के साथ घुमने घामने | अब जो तुम आ गई हो तो तुम ही उसे सुधार सकती हो | इतने में ही रामू घर में आ जाता है और नयी लड़की को दुल्हन के रूप में सज संवर कर बैठे देखकर समझ जाता है की वह उसकी ही होने वाली दुल्हन है | ये देखकर रामू बहुत शरमा जाता है वह अपनी नई नवेली दुल्हन के सामने आने का साहस तक नही जुटा पाता |

आखिर वह बड़ी हिम्मत जुटाकर सुलोचना के आगे आ ही जाता है जो उस समय शाम के भोजन हेतु चावल सुधार रही होती है | इतने में रामू उसके सामने आकर अपने पंख फडफडाना आरम्भ कर देता है | सुलोचना उसे हट – हट करके दूर भगाने का प्रयास भी कर रही है पर रामू अपनी शैतानी करना जारी रखता है | परेशांन होकर सुलोचना अपने ससुर भगतराम से शिकायत करती है कि “देखिये न बापूजी ये मुर्गा जो है मुझे बार – बार परेशान कर रहा है अपने पंख बार – बार फडफडाकर कचरा कर रहा है | अगर ये अपने घर का मुर्गा है तो वैसे भी शाम हो रही है तो क्या मैं जाकर इसे इसके पिंजरे या टोकरी में बन्द कर दू क्या ?”

“बेटा सुलोचना ! ये कोई आम मुर्गा नही है | यही तो वो रामू है जिसके लिए तुम आई हो, तुम्हारा पति यही तो है बेटी |”

“ये ! मेरा पति ! तो इसके लिए मुझे आप यहाँ लाये है ?”

“हाँ बेटा”

इतना सुनते ही सुलोचना के पैरो तले जमीन ही खिसक गई | ऐसे लगा जैसे किसी शांत समंदर अचानक बहुत तीव्र चक्रवात आ गया हो | मारे गुस्से के वह तुरंत वहां से अपने गाँव की ओर तेजी से चल पड़ी | भगतराम और रामू दर्शक की तरह इस दृश्य को देखते ही रह गए परन्तु उनमे इतनी हिम्मत भी न थी की सुलोचना को रोक पाए | इसके पश्चात भगतराम ने रामू को हिदायत दी की कल सुबह होते ही तुम बहु को लेने चले जाना | सुबह तक उनका गुस्सा ठंडा भी हो जायेगा |

अगले दिन अलसुबह ही रामू सिंकड़ी की लकड़ी से बनी गाड़ी को फूलो और रंग – बिरंगे झुमरो से अच्छी तरह से सजा – धजाकर उस पर दस – बारह चूहों को जोतकर अपने गाँव से ससुराल की ओर चल पड़ा |

चलते – चलते रास्ते में उसे एक भूरिया बिल्ली मिला रामू को इस तरह जाते हुए उसने उसे टोका –

मामा – मामा कहाँ जा रहे हो सज संवर कर ?

कुछ नही यार ससुराल जा रहा हूँ तुम्हारी मामी को लेने |

मामा फिर तो मैं भी आऊंगा तुम्हारे साथ मामी को लेने |

अरे मेरे प्यारे भांजे गाड़ी में जगह नही है और अगर मैं तुझे यहाँ बैठा लूँगा तो फिर तेरी मामी को कहाँ बैठाऊंगा ?

मामा इतनी सी बात की फ़िक्र करते हो मैं तुम्हारे कान के अन्दर बैठ जाऊंगा |

अच्छा ठीक है | चलो आकर बैठ जाओ मेरे कान में |

आगे जाने पर रामू को मधुमक्खियो का एक छत्ता मिला उस पर से कुछ मधुमक्खिया भी उसके साथ ससुराल जाने की जिद करने लगी | सो रामू ने उनको भी अपने कान के अन्दर बैठा लिया |

इसी तरह जैसे – जैसे रामू आगे बढता जा रहा था उसे रास्ते में क्रमशः चीटियाँ, बाघ, और भेड़िया मिला इन्हें भी रामू ने अपने कान में बैठा लिया |

ससुराल पहुँचते ही रामू ने अपने ससुराल वालो से राम – राम लिया तो किसी ने उसका प्रत्युत्तर तक नही दिया | सुलोचना ने चाय – पानी इत्यादि पूछने की बजाय उलटे वह तो रामू को देखकर घर के भीतर ही छिप गई | रामू ने अपने सास, ससुर, साले, सालियों से करबद्ध विनती की कि सुलोचना को उसके साथ भेज दे | लेकिन सभी ने उसका तिरस्कार कर वापस लौट जाने को कहा पर रामू भी हार मानने वाला नही था | आखिर उसने भी सभी के सामने ये ठान ही लिया कि सुलोचना को साथ में लिए बगैर वह यहाँ से जाने वाला नही |

शाम ढल चुकी थी | पर रामू अपनी जिद में अड़ा रहा वह वहां से टस से मस न हुआ | ये देखकर रामू के पिताजी को चिंता होने लगी कि अगर ये यहाँ से नही गया तो सारे गाँव में न जाने लोग उनके बारे में क्या – क्या कहेंगे | इसलिए उन्होंने अपने बेटो को बुलाकर कहा कि “जाओ इस मुर्गे को अपने घर के बड़े – बड़े मुर्गो के साथ बंद कर दो” | बेटो ने यही किया |

जब दो घंटे बाद बड़ी टोपली खोला गया जिसमे रामू को उनके मुर्गो के साथ बंद किया गया था | तो देखते ही उसके ससुर के होश उड़ गए | क्या देखते है कि बस रामू को छोड़कर सारे मुर्गे मृत अवस्था में पड़े है | दरअसल रामू ने जो भूरिया बिल्ली को अपने कान में बैठा कर लाया था न तो उसने इन मुर्गो का ये हाल किया था |

इसके बाद सुलोचना के पिताजी ने आदेश दिया कि “कोई बात नही ये हमारे घर के मुर्गो से तो बच गया लेकिन हमारे घर में बंधे हुए बड़े – बड़े बकरियों से नही बच पायेगा | रात भर ये बकरियां उसे कुचल – कुचलकर मार डालेगी” | ठीक ऐसा ही किया गया | बकरियों के साथ खोली में बंद होते ही रामू ने अपने कान के अन्दर से भेडिये को बाहर बुलाया | भेडिये ने बाहर निकलते ही सभी बकरियों को चट कर गया | इस तरह कुछ समय पश्चात् बकरियों की खोली का दरवाजा खोला गया ये देखने के लिए की रामू की क्या दुर्दशा की है बकरियों ने | परन्तु इस बार भी रामू ने बाजी मार ली थी |

इसी प्रकार जब रामू को घोड़ो के बीच अस्तबल में छोड़ दिया तो रामू ने अपने कान के अन्दर से बाघ को बुलाया तो बाघ ने सभी घोड़ो को भी मार डाला |

इसके बाद आखिर हारकर उन्होंने रामू को हाथियों के बीच छोड़ दिया ये सोचकर की अब तो इसका बच पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है क्योकि इतने विशाल हाथियों के पैर के नीचे आते ही ये तो क्या इसकी अस्थियाँ भी नही बचेगी | लेकिन रामू ने इससे बचने का भी तरीका निकाल ही लिया | उसने अपने कान में से चीटियों को बाहर बुलाया | चींटियो ने बाहर निकलकर हाथियों के सूंड के अन्दर घुसकर उनके नाक में दम कर दिया जिससे हाथियों ने रामू का बाल भी बांका नही किया |

रामू के ससुराल वालो की हर कोशिश नाकामयाब हो रही थी | सभी सोच रहे थे की ये एक छोटा सा मुर्गा होकर हमें परेशान कर रहा है | इसका तो कुछ प्रबंध करना पड़ेगा | तब अंत में फैसला लिया गया कि इस समस्या का समाधान करने के लिए | गाँव में पंचायत बैठाया जाये जो पंच परमेश्वर का न्याय होगा वही सर्वोपरि होगा | इस तरह गाँव के मुखिया समेत सभी लोगो को बुलाया गया | गाँव के बीचो बीच चौपाल में पंचायत बैठाई गयी | सुलोचना के पिताजी ने मुखिया के समक्ष अपनी समस्या बताई |

गाँव के मुखिया ने समस्या को अपने संज्ञान में लेते हुए फैसला लिया कि “इस मुर्गे ने नाहक ही इस परिवार को परेशान किया है एवं इनके घर के जान – माल को भी नुकसान पहुँचाया है | इसलिए हम ये फैसला सुनाते है कि इस मुर्गे को अभी पकड़कर लाया जाये और इसे काटकर सभी के लिए दावत की व्यवस्था की जाए | ये सुनकर रामू को अत्यंत क्रोध आ गया उसने अन्दर बैठे सभी मधुमक्खियों को बाहर बुलाया | मधुमक्खियाँ बाहर आते ही पंचायत में बैठे सभी लोगो को काटने लगी | वहां पर अफरा – तफरी मच गई | सभी अपनी – अपनी जान बचाने हेतु इधर- उधर भागने लगे | लेकिन मधुमक्खियाँ रुकने का नाम ही नही ले रही थी | हालात अपने काबू से बाहर हो गयी थी |

आखिर सभी ने बचाओ – बचाओ कहते हुए रामू के सामने अपने घुटने टेक दिए | इसके बाद दौड़ते – दौड़ते रामू का ससुर आया और उसने सुलोचना का हाथ उसे देते हुए याचना करने लगा कि कृपया इन मधुमक्खियो से हमें बचा लो और मैं मेरी बेटी का हाथ तुम्हारे हाथो में दे रहा हूँ |

अंततः रामू ने सभी से विदाई ली और गाड़ी जोतकर उसमे पत्नी सुलोचना को साथ लेकर वापस अपने गाँव की ओर चल पड़ा | साथ आये जानवर मित्र भी रामू के कान से बाहर निकलकर गाड़ी के सामने बरातियो की तरह नाचते हुए जा रहे थे |

.
गोविन्द उइके

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 364 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अपनी गलती से कुछ नहीं सीखना
अपनी गलती से कुछ नहीं सीखना
Paras Nath Jha
💜सपना हावय मोरो💜
💜सपना हावय मोरो💜
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
सूर्य देव की अरुणिम आभा से दिव्य आलोकित है!
सूर्य देव की अरुणिम आभा से दिव्य आलोकित है!
Bodhisatva kastooriya
यादों से निकला एक पल
यादों से निकला एक पल
Meera Thakur
हिन्दी की गाथा क्यों गाते हो
हिन्दी की गाथा क्यों गाते हो
Anil chobisa
कोरोना संक्रमण
कोरोना संक्रमण
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मिष्ठी के लिए सलाद
मिष्ठी के लिए सलाद
Manu Vashistha
बीते कल की क्या कहें,
बीते कल की क्या कहें,
sushil sarna
प्रेम
प्रेम
Neeraj Agarwal
We become more honest and vocal when we are physically tired
We become more honest and vocal when we are physically tired
पूर्वार्थ
*आओ देखो नव-भारत में, भारत की भाषा बोल रही (राधेश्यामी छंद)*
*आओ देखो नव-भारत में, भारत की भाषा बोल रही (राधेश्यामी छंद)*
Ravi Prakash
कि हम मजदूर है
कि हम मजदूर है
gurudeenverma198
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
sushil yadav
दोहे- दास
दोहे- दास
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
गुनगुनाने यहां लगा, फिर से एक फकीर।
गुनगुनाने यहां लगा, फिर से एक फकीर।
Suryakant Dwivedi
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
Sanjay ' शून्य'
युवा
युवा
Akshay patel
#डॉ अरुण कुमार शास्त्री
#डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हमारी आजादी हमारा गणतन्त्र : ताल-बेताल / MUSAFIR BAITHA
हमारी आजादी हमारा गणतन्त्र : ताल-बेताल / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
केशव
केशव
Dinesh Kumar Gangwar
जनहित में अगर उसका, कुछ काम नहीं होता।
जनहित में अगर उसका, कुछ काम नहीं होता।
सत्य कुमार प्रेमी
रेशम की डोरी का
रेशम की डोरी का
Dr fauzia Naseem shad
यह  सिक्वेल बनाने का ,
यह सिक्वेल बनाने का ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
कितना गलत कितना सही
कितना गलत कितना सही
Dr. Kishan tandon kranti
बढ़ने वाला हर पत्ता आपको बताएगा
बढ़ने वाला हर पत्ता आपको बताएगा
शेखर सिंह
मेरे जिंदगी के मालिक
मेरे जिंदगी के मालिक
Basant Bhagawan Roy
#व्यंग्य
#व्यंग्य
*प्रणय प्रभात*
द्रोपदी फिर.....
द्रोपदी फिर.....
Kavita Chouhan
माह सितंबर
माह सितंबर
Harish Chandra Pande
रास्तों के पत्थर
रास्तों के पत्थर
Lovi Mishra
Loading...