कि हम मजदूर है
(शेर)- मजदूर हुए तो क्या हुआ, हम भी तो इंसान है।
हम भी तो इस देश की, तुम्हारी तरह सन्तान है।।
ये महल और बंगले तुम्हारे, हमने ही बनाये हैं।
करते नहीं हैं हम चोरी, मेहनत हमारा ईमान है।।
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नहीं हमको शर्म यह कहने में, कि हम मजदूर है।
लेकिन चिंता – अभिमान से, हम तो कोसों दूर है।।
नहीं हमको शर्म यह कहने में————–।।
रूखी – सूखी खाकर रोटी, मस्ती से सो जाते हैं।
सर्दी हो या गर्मी- वर्षा, मस्ती में गीत हम गाते हैं।।
नहीं सपनें हमारे बहुत बड़े, झौपड़ी ही हमें मंजूर है।
लेकिन चिंता – अभिमान से, हम तो कोसों दूर है।।
नहीं हमको शर्म यह कहने में ——————।।
खुश होकर वही पहनते हैं, जो भी हमारे पास है।
चाहे फटे – पुराने कपड़ें हो, लेकिन नहीं उदास है।।
नहीं नखरे हमको आते हैं, नहीं शौक हमारे फितूर है।
लेकिन चिन्ता- अभिमान से, हम तो कोसों दूर है।।
नहीं हमको शर्म यह कहने में————–।।
हमने ही पसीना बहाया है, तुम्हारे महल बनाने में।
बुलडोजर तुम चलाते हो, हमारी बस्ती मिटाने में।।
गर तुमको नहीं सुख और चैन, हमारा क्या कसूर है।
लेकिन चिन्ता- अभिमान से, हम तो कोसों दूर है।।
नहीं हमको शर्म यह कहने में —————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)