जिदगी
ये लिबाज़ तो पुराना होगा !”
कौन-सी तारीख,
कौन-सा ठिकाना होगा ?
न जाने ज़िन्दगी का
मौत से मिलने का क्या बहाना होगा ?
जीने में हूं व्यस्त इतना,
मानो हमेशा ही मेरा जीना होगा,
न जाने ज़िन्दगी का
मौत से मिलने का क्या बहाना होगा ?
ये कैसा भ्रम है अपना,
ये कैसी सोच है!
सच से मूंदे आंखें,
सभी यहां मदहोश है!
कर लो चाहे जो भी जतन,
ये लिबाज़ तो पुराना होगा !
न जाने ज़िन्दगी का
मौत से मिलने का क्या बहाना होगा ?
आईना दे रहा है सबूत रोज़ाना,
मेरा ही नहीं रूकता इन्हें मिटाना,
कभी झुर्रियां, तो कभी
बालों की सफ़ेदी छुपाना,
ये लिबाज़ तो पुराना होगा !!
बस, ये तो गुजरेगी
रेत है हाथों से फिसलेगी !
नहीं रूकेगा इसका यूं पिघलना,
व्यर्थ होगा तेरा इसे थामना,
ये लिबाज़ तो पुराना होगा !
न जाने ज़िन्दगी का
मौत से मिलने का क्या बहाना होगा ??