जित धर्म की
रावण को जलाने का मौका किस लीये आया ।
दशहरे के दिन राम’ ने क्या सबक सीखलाया ।।
वो भी एक “ज्ञानी” था ‘महा पंडित’ कहलाता ।
फिर भी अपने “कर्मो” से वो हर वर्ष दहलाता ।।
स्त्री के मान मर्यादा की रक्षा वो भी करता था ।
अनईच्छाई’ कृत्य से वो भी तो भाई डरता था ।।
सीता हरण का अंजाम क्या? बखूबी पता था ।
धर्म अधर्म’ की बाते अच्छी तरह समझता था ।।
अहंकार अभिमान से वो चूरचूर भरा पड़ा था ।
मुत्यु तो निश्चित है फिरभी वही डटा खड़ा था ।।
सत्य की हमेश जित हो ये उपदेश तो देना था ।
अधर्म से जलती लंका यही तो बस कहना था ।।
चलो जलाये मिलके नफरते और अहंकार को ।
मत जलावो मिलके तुम रावण के सँस्कार’ को ।।
हर बर्ष तो वो जलता है न जाने किस ‘राम’ से ।
बने राम का मान एक गुण मिले जो रावण से ।।
@अंकुर…..