जितनी स्त्री रो लेती है और हल्की हो जाती है उतना ही पुरुष भी
जितनी स्त्री रो लेती है और हल्की हो जाती है उतना ही पुरुष भी रो ले और हल्का हो जाये तो कई बेवजह की समस्याओं का समाधान हो जाए पर पुरुष को पुरुष होने का अहंकार उसे रोने नही देता फिर उसका दबा हुआ आँसू शब्दों का रूप लेकर मुँह से निकलेगा और विवाद उत्पन्न करेगा जबकि प्रकृति ने कोई भी भेद नही किया है स्त्री और पुरूष में, जितने आँसुओ की ग्रन्थि पुरुष की आँखों में है उतनी ही ग्रंथि स्त्री की आँखों में भी, परन्तु पुरुष होने का अहंकार बाधा बन जाता है
पुरुष के रोने में..!