जितनी लंबी जबान है नेताओं की ,
जितनी लंबी जबान है नेताओं की ,
उतने तो उनके सुधारवादी कार्य नहीं ।
बखान करते फिरते गली गली में अपना ,
अपना बखान करने की आदत कभी जायेगी नहीं ।
अपनी अपनी दुकान खोलके बैठे है ,
अपने वायदों और एजेंडों की ।
क्या समझते हैं खुद को ,जनता मूर्ख है !
अजी हुजूर ! काठ की हांडी बार बार आग पर अब चढ़ेगी नहीं ।