जितनी चादर हो उतने ही पांव पसारें
गगनचुंबी महल,
नोटो भरी तिजोरियां
किसे सुकुन देते हैं,
कब चैन की नींद
सोने देते हैं।
पैसा सिर्फ
तृष्णा बढ़ाता है,
बेचैनी बढ़ाता है।
संतोष का एक
अंश मात्र ही
जीवन में
रस भर देता है,
आनंदित कर देता है।
क्यूं न हम
जीवन का फलसफा
समझें,
पैसों के पीछे
ना दौड़ें
जितनी चादर हो
उतने ही पांव पसारें।