जितनी चादर उतना पैर पसारो !
बुजुर्गों न हमेशा से कहा है,
सपनो को अपने थोड़ा संभालो,
खर्च करने से पहले तुम विचारो,
जितनी चादर उतना पैर पसारो।
आमदनी से खर्च जो बढ़ जायेगा,
सर पर तुम्हारे कर्ज़ चढ़ जायेगा।
रातों को चैन से सो न पाओगे,
कच्ची नींद से रोज जग जाओगे।
घर बार कर्ज में बिक जाता है,
जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।
मान मर्यादा भी सब जाती है,
विपत्ति हर तरफ से आती है।
जीवन को अपने सरल बनाओ,
बिना वजह नहीं गरल बनाओ।
सरलता में ही जीवन का सार है,
सादा जीवन और उच्च विचार है।