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11 Oct 2021 · 1 min read

जिगर कितना बड़ा है

जिगर उसका कितना बड़ा है
कि पत्थर में शीशा जड़ा है

सदा दूसरों की खुशी को
वह अपनों से अक्सर लड़ा है

लहू से यही तर बतर था
मसीहा जो बनकर खड़ा है

हमें क़द बढ़ाकर खुशी है
मगर फ़िक्र में वो बड़ा है

सलीके़ से इसको ताराशो
अभी तो यह कच्चा घड़ा है

क़दम अब बहकने लगे हैं
बुलंदी से पाला पड़ा है

हमारे ही पैरों के दम पर
कोई आज हमसे बड़ा है

सिला है यह अरशद वफ़ा का
वह सफ़ में अकेला खड़ा है

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