जिक्र करना भी तेरा अब गुनाह हो गया
ज़िक्र करना भी तेरा अब गुनाह हो गया ।
किया नहीं क़त्ल कभी भी गलती से,
फ़िर भी मैं कैसे बदनाम हो गया ।।
सारे जहाँ का बाबू अमला पड़ा है मेरे पीछे,
जैसे कि सारे जहाँ का मैं गुनहगार हो गया ।
मैं तुझे ढूंढता फ़िरता रहा हूँ अब तक आवारा,
पाकर तुझको वो कैसे तेरा सिपहसलार हो गया ।
वक़्त की नज़रों में ज़ालिम गिर गया हूँ तेरे सदके,
आज तू कहता है मुझसे मैं इतना क्यूँ मशहूर हो गया ।
अब क़भी न रोती हैं धड़कन, मेरे दिल की तुझे पाने को,
क़भी जो बहते थे अश्क़ लगातार आज वहाँ सूखा हो गया ।
हर बसंत याद है तेरी, ख़ुशी में यूँ गुज़री थी संग तेरे,
आज तो मौसम भी बसंत का मुझसे नजरें चार हो गया ।
तू बस लौटा दे मुझको वो पुराने दिन मेरे हमदम,
“आघात” तुझे पाने की ख़ातिर, आशियाँ से बेघर हो गया ।।