हम पंछी गगन के हैँ तेरे
हम पंछी गगन के हैँ तेरे
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साँई धीर धरो मन मेरे,
हम पंछी गगन के हैँ तेरे।
नीर भरा नैनों में हर दम,
हर पल गाएँ तेरी सरगम,
प्रभु जी पीर हरों तन मेरे।
हम पंछी गगन के हैँ तेरे।
तुम ही सखा तुम्हीं सहारे,
नाम तुम्हारे मै पढूँ-पहाड़े,
सुधबुध भरो प्रभु मन मेरे।
हम पंछी गगन के हैं तेरे।
माया ठगनी ठगती जाए,
लोभ क्रोध है भरती जाए,
अरदास करूँ शाम-सवेरे,
हम पंछी गगन के हैँ तेरे।
जीवन एक पंछी पिंजरा,
सोये हम सब गहरी निंद्रा,
दूर भगाओ घोर अंधेर्रे।
हम पंछी गगन के है तेरे।
सिवा तुम्हारे नहीं हमारा,
दृढ बंधन हमारा तुम्हारा,
प्यासे नैना तुम्हें निहारें।
हम पंछी गगन के हैँ तेरे।
मनसीरत तो तेरा दीवाना,
तेरा दर ही ठोर ठिकाना,
बैठ – बनेरे विनती गुहारें।
हम पंछी गगन के है तेरे।
साँई धीर धरो मन मेरे।
हम पंछी गगन के हैँ तेरे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैंथल)