जिंदगी
* जिन्दगी *
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जिन्दगी उम्र को खाती है बडी होती है ।
वक्त के बोझ को सिर पर उठाये ढोती है ।।1
बोझ बढता है कि बढता ही चला जाता है ।
बूढी अम्मा सी कहीं मौन पडी रोती है ।।2
कोई चुपचाप घौंपता है पीठ में खंजर ।
जिन्दगी आप ही इन खंजरों को बोती है ।।3
जो कभी फूल की सेजों पै पाँव रखते थे।
आज उनके ही करम में फटी सीधोती है ।।4
खो गया है कहीं या भूल गये रख के उसे ।
लुटा जो हमने दिया कीमती वो मोती है ।।5
मैले आँचल को छिपा मीत कहाँ जाओगे ।
दाग दामन के यार जिन्दगी ही धोती है ।।6
जिन्दगी की कहानी कहना कठिन है यारो ।
जिन्दगी जलते हुए दीपकों की ज्योति है ।।7
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महेश जैन ‘ज्योति’ ,
मथुरा ।
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