जिंदगी
जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती ,
ये महबूबा किसे भली नहीं लगती ,
सताती -रुलाती है बेशक हँसाती भी ,
मगर फिर भी इसकी हर अदा भाती ।
कभी तो सब अरमान पूरे हो जाते हैं ,
और कभी नाचीज़ चाहों को तरसाती ।
चाहे इसे मौकापरास्त कह लो या बेवफा ,
हालात बदलते ही यह पेंतरा बदलती ।.
गम -खुशी है सिंगार जिसके हरदम ,
आह और वाह में सदा यह झुलाती ।
कोई इसे समझ ले तो कामयाब इंसा ,
वरना ये पहेली सभी से नहीं सुलझती ।
कोई तक़दीर का मारा हो जाता है हताश ,
जिंदगी की डोर इसके हाथों से छूट जाती ।
किसने कहा इसे दौलत खरीद सकती है,
दौलत मिलने पर भी रूह प्यासी रह जाती ।
न हो जिसके साथ कोई हमसफर /हमराज़ ,
यह जिंदगी भी उसकी दोस्त नहीं बन पाती ।
मजबूरीयां ही थमाती जहर का प्याला हाथों में,
वरना तन से जां निकलनी क्या आसां है होती ?
बहुत आसान है कायर औ डरपोक का नाम देना ,
कोई सहके दिखाये फिर कहे मजबूरी क्या होती ।