!! जिंदगी !!
!! जिंदगी !!
212/212/212/212
याद बीते दिनों की दिलाती रही,
जिंदगी हर घड़ी आजमाती रही ।
दो घड़ी हम कभी साथ बैठे नहीं,
जिंदगी दौड़ ऐसा कराती रही ।
मैं वफ़ा कर रहा था जफ़ा हो गयी,
जिंदगी ख़ूब लड़ती-लड़ाती रही ।
यार भी सब यहाँ अब बिछड़ने लगे,
जिंदगी लाख सबको मिलाती रही ।
वे नज़र ही नहीं आ रहे हैं कहीं,
जिंदगी रोज “दीपक” दिखाती रही ।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव
पालघर, महाराष्ट्र