जिंदगी
2122 2122 2122 212
शांत चित एकांत विस्मित ज़िन्दगी की ताल पर।
नित्य कुसमित हो रहा दृग,स्वप्न सुरभित डाल पर।
शून्य नीरव राग गाता साँस के हर तार पर-
गूँथती हो रात ज्यों तारें हजारों भाल पर ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
2122 2122 2122 212
शांत चित एकांत विस्मित ज़िन्दगी की ताल पर।
नित्य कुसमित हो रहा दृग,स्वप्न सुरभित डाल पर।
शून्य नीरव राग गाता साँस के हर तार पर-
गूँथती हो रात ज्यों तारें हजारों भाल पर ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली